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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2645
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर

उपन्यास

प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।

अथवा
हिन्दी उपन्यास साहित्य के क्रमिक विकास की रूपरेखा देते हुए उसमें सामाजिक यथार्थ के अंकन की समीक्षा प्रस्तुत कीजिए।
अथवा
हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर सारगर्भित लेख लिखिए।

उत्तर -

आधुनिक काल में विकसित गद्य विधाओं में उपन्यास का महत्वपूर्ण स्थान है। हिन्दी उपन्यास के विकास का श्रेय अंग्रेजी एवं बंगला उपन्यासों को दिया जा सकता है, क्योंकि हिन्दी में इस विधा का श्रीगणेश अंग्रेजी एवं बगला उपन्यासों की लोकप्रियता से हुआ। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती में प्रकाशित एक निबन्ध 'उपन्यास रहस्य' में इस बात को स्वीकार किया है कि उपन्यास के प्रचलन, विकास एवं सृजन का श्रेय पश्चिमी देशों के लेखकों को ही है जिनसे प्रेरणा लेकर हिन्दी से भी उपन्यास की रचना की जाने लगी है। बालकृष्ण भट्ट ने भी इसकी पुष्टि करते हुए लिखा है "हम लोग जैसा और बातों में अंग्रेजी की नकल करते जाते हैं, उपन्यास का लिखना भी उन्हीं के दृष्टान्त पर सीख रहे हैं। हिन्दी में उपन्यास का आरम्भ भी अंग्रेजी से अनूदित उपन्यासों से माना जाता है। सन् 1853 ई. में वंशीधर द्वारा पामस डे के लोकप्रिय उपन्यास सैण्डफोर्ड एण्ड मर्टन का अनुवाद किया गया तथा डॉ. जानसन के उपन्यास 'रासे लास' का हिन्दी अनुवाद 1875 ई. में किया गया।

हिन्दी के प्रथम मौलिक उपन्यास के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद रहा है। इस सम्बन्ध में जिन दो उपन्यासों का नाम लिया जाता है वे हैं श्रद्धाराम फुन्लौरी कृत 'भाग्यवती तथा लाला श्री निवासदास द्वारा लिखा गया 'परीक्षा गुरु इनमें से प्रथम उपन्यास में सुधारवादी प्रवृत्ति परिलक्षित होती है तथा द्वितीय उपन्यास में भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को श्रेष्ठ प्रमाणित करते हुए उपदेश वृत्ति का आधार ग्रहण किया गया है। 'परीक्षा गुरु को ही अधिकांश विद्वान हिन्दी का पहला उपन्यास मानते हैं।

हिन्दी उपन्यास के विकास को मुंशी प्रेमचन्द को केन्द्र बिन्दु मानकर तीन चरणों में विभाजित' किया जा सकता है -

(1) प्रेमचन्द पूर्वकालीन उपन्यास - प्रेमचन्द पूर्ववर्ती काल में मुख्यतया दो प्रकार के उपन्यास लिखे गये

(क) सामाजिक सुधार की भावना से लिखे गये उपदेश प्रधान उपन्यास।
(ख) मनोरंजन की दृष्टि से लिखे गये तिलस्मी, ऐय्यारी और जासूसी उपन्यास |

इनमें से प्रथम प्रकार के उपन्यासकार और उनके उपन्यासों के नाम निम्नलिखित हैं-

श्री निवासदास परीक्षा गुरु, रत्नचन्द्र प्लीडर नूतन चरित्र, पं0 बाल कृष्ण भट्ट-सौ अजान एक सुजान, नूतन ब्रह्मचारी ठा. जगमोहन सिंह श्याम स्वप्न, पं0 किशोरी लाल गोस्वामी स्वर्गीय कुसुम, त्रिवेणी या सौभाग्य श्रेणी, हृदयहारिणी या आदर्श की रमणी, लवंगलता या आदर्श बाला, मदन मोहिनी माधवी माधव, प्रेममयी आदि अयोध्यासिंह उपाध्याय टेठ हिन्दी का ठाठ, अधखिला फूल, प्रेमकान्त रानी राधाचरण गोस्वामी - विधवा, कल्पलता विपत्ति लज्जा राम शर्मा - स्वतन्त्र रमा और परतंत्र लक्ष्मी, कपटी मिश्र. धूर्त रसिक लाल, बिगड़े का सुधार तथा सती सुखदेवी ब्रजनन्दन सहाय- राधाकान्त सौन्दर्योपासक, अख्य बाला राधा कृष्ण दास - निरसहाय हिन्दू कार्तिक प्रसाद-दीनानाथ।

इन उपन्यासकारों के विषय में डॉ0 राजनाथ शर्मा ने लिखा है। बीसवीं सदी के आरम्भ तक उपन्यास के क्षेत्र में छुटपुट प्रयास ही होते रहे थे। उपन्यासकारों का मूल उद्देश्य अपने उपन्यासों के माध्यम से उपदेश देते हुए व्यक्ति और समाज को सुधार की प्रेरणा देता रहा था। इसलिए केवल सामाजिक उपन्यास ही लिखे गये। प्रथम हिन्दी उपन्यास का जन्म हो चुका था, परन्तु अभी उसे एक निश्चित रूप धारण करना शेष था। इस काल में अंग्रेजी, बंगला और मराठी उपन्यासों के हिन्दी में अनुवाद भी किये गये।

तिलस्मी और ऐय्यारी उपन्यासकारों में देवकी नन्दन खत्री सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं तो, जासूसी उपन्यास लेखकों में गोपालराम गहमरी का प्रमुख स्थान है।

(2) प्रेमचन्द कालीन उपन्यास - उपन्यास के क्षेत्र में मुंशी प्रेमचन्द के पदार्पण करने से पूर्व हिन्दी उपन्यास क्षेत्र में तिलस्मी, जासूसी, ऐय्यारी से सम्बन्धित उपन्यासों का बोलबाला था अथवा उनके माध्यम से धार्मिक तथा समाज-सुधार विषयक उपदेश प्रदान किये जाते थे। प्रेमचन्द ने इनके स्थान पर ज्वलंत सामाजिक समस्याओं को अपने उपन्यासों का विषय बनाया। उस समय देश में जो नव जागरण की लहर उठ रही सबसे पहले उन्हीं के उपन्यासों में सशक्त राष्ट्रीयता के रूप में व्यक्त हुई है। मुंशी प्रेमचन्द ने एक दर्जन के लगभग उपन्यास लिखे। जिनमें से प्रमुख नाम हैं सेवासदन, प्रेमाश्रय, निर्मला, रंगभूमि, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि और योगदान। प्रेमचन्द काल में जयशंकर प्रसाद, जैनेन्द्र, उपेन्द्रनाथ अश्क, चतुरसेन शास्त्री, राहुल सांत्कृत्यायन, भगवतीचरण वर्मा, वृन्दावनलाल वर्मा आदि प्रसिद्ध उपन्यासकारों ने उपन्यास लेखन आरम्भ कर दिया था किन्तु इनमें से अधिकांश उपन्यासकारों को प्रेमचन्द काल के पश्चात् ही ख्याति मिल सकी। इस काल के प्रसिद्ध उपन्यासकार और उनके उपन्यासों के नाम निम्नांकित हैं- (ये लेखक बाद तक उपन्यास लिखते रहे हैं।)

जयशंकर प्रसाद कंकाल, तितली और इरावती (अपूर्ण) चतुरसेन शास्त्री - परख हृदय की प्यास, वैशाली की नगर वधु जैनेन्द्र- सुनीता, कल्याणी और तपोभूमि पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र - दिल्ली का दलाल, सरकार तुम्हारी आंखों में चन्द हसीनों के खतूत वृन्दावनलाल शर्मा- गूढकण्ठार, विराट की पद्मिनी, कचनार, मृगनयनी, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई आदि; प्रताप नारायण श्रीवास्तव का विदा विकास।

(3) प्रेमचन्दोत्तर कालीन उपन्यास - सन् 1936 में मुंशी प्रेमचन्द का निधन होने के पश्चात् हिन्दी उपन्यास का कई धाराओं में विकास हुआ। जैसाकि कहा जा चुका है कि इस काल के अनेक उपन्यासकार ऐसे हैं, जिन्होंने प्रेमचन्द काल में ही उपन्यास लिखना आरम्भ कर दिया था। प्रेमचन्दोत्तर काल के उपन्यासों को निम्नांकित वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-

(क) ऐतिहासिक उपन्यास - ऐतिहासिक उपन्यासकारों में सबसे प्रथम उल्लेखनीय नाम किशोरीलाल गोस्वामी का है जो प्रेमचन्द पूर्व काल के उपन्यासकार थे। उन्होंने हृदयहारिणी या आदर्श रमणी, लवंगलता या आदर्श बाला, सुल्ताना, रजिया बेगम का रंगमहल में हलाहल, मुख शर्वरी आदि ऐतिहासिक उपन्यास लिखे थे। ऐतिहासिक उपन्यासों के क्षेत्र में सर्वाधिक प्रसिद्ध उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा हैं, जिनके मृगनयनी, गूढ़ कुंठार आदि उपन्यासों का पहले उल्लेख किया जा चुका है। ऐतिहासिक उपन्यासकारों में अन्य उल्लेखनीय उपन्यासकार हैं श्री राहुल सांकृत्यायन, जययौधेय सिंह सेनापति, विस्मत यात्री, मधुर स्वप्न, पं0 चतुरसेन शास्त्री-शाली की नगरवधु वयं रक्षमामः सोमनाथ, यशुपाल-दिव्या, अमिता, हजारी प्रसाद द्विवेदी वाणभट्ट की आत्मकथा, डॉ. रांगेय राघव मुर्दों का टीला |

(ख) समाजवादी उपन्यास - इस श्रेणी के उपन्यासों में आर्थिक वैषम्य तथा सामाजिक रूढ़ियों का चित्रण करते हुए मार्क्सवादी सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। अपने उपन्यासों में मार्क्सवादी सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले उपन्यासकारों में यशपाल प्रमुख हैं, जिन्होंने दादा कामरेड, मनुष्य के रूप, बारह घंटे, देशद्रोही आदि उपन्यास लिखे हैं। इसी प्रकार के अन्य उपन्यासकारों और उनके उपन्यासों के नाम हैं - डॉ. रांगेय राघव विषदामत, हुजूर, घरौंदे सीधा-सादा रास्ता, काका भैरव प्रसाद गुप्त गंगा मैया और मिशाल आदि नागार्जुन - नई पौध, बाबा बटेसरनाथ, बलचल नमा, दुख मोचन, वरुण के बेटे, भूतनाथ की चाची आदि प्रेत बोलते हैं उखड़े हुए लोग, रात अंधेरी है आदि, अमृत रात के हाथी के दांत, नागफनी के बीज आदि। अमृतलाल नागर भी इसी परम्परा के उपन्यासकार हैं, किन्तु उनके उपन्यासों में मार्क्सवादी सिद्धान्तों में प्रतिपादन के स्थान पर जनता की आदम्य जिजीविषा और अपराजेय संघर्ष भावना का जीवन पुट रहता है। आपके उपन्यासों के नाम हैं- सेठ बांकेमल, बूँद समुद्र, महाकाल, सुहान के नुपूर, अमृत और विष शतरंज के मोहरे आदि।

(ग) घोर यथार्थवादी उपन्यास - कुछ ऐसे यथार्थवादी उपन्यास भी लिखे गये हैं, जिनमें समाज के घिनौने और अश्लील पक्ष का अधिक उद्घाटन किया गया है। इस प्रकार के उपन्यासकारों में पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र का नाम प्रमुख है। उनके ऐसे उपन्यासों का नाम है चंद हसीनों के खतूत, दिल्ली का दलाल, सरकारी तुम्हारी आँखों में, फंटा, शराबी, बुधुआ की बेटी आदि। आचार्य चतुरसेन के ख्वास का विवाह, हृदय की परख मन्दिर की नर्तकी, हृदय की प्यास आदि ऋषभचरण जैन के दिल्ली का व्यभिचार, मास्टर साहब, वेश्या पुत्र आदि।

(घ) मनोविश्लेषणात्मक उपन्यास - मनोविश्लेषणात्मक उपन्यासों के पात्रों के अवचेतन और अवचेतन मस्तिष्क में रहने वाला दमित कुंठाओं पर बल दिया जाता है। इस प्रकार के उपन्यासों में जैनेन्द्र, अज्ञेय और इलाचन्द्र जोशी विशेष प्रसिद्ध हैं। अज्ञेय ने शेखर एक जीवनी, नदी के द्वीप तथा अपने-अपने अजनबी नामक तीन उपन्यास लिखे हैं। जैनेन्द्र के सुनीता, त्यागपत्र, कल्याण, सुखदा, विवर्त व्यतित जयवर्धन आदि भी मनोविश्लेषणात्मक उपन्यास ही है। इलाचन्द्र जोशी के उपन्यासों के नाम हैं- जिप्सी, सुबह के भूले, जहाज का पंछी, ऋतु चक्र आदि उपेन्द्र नाथ अश्क ( गिरती दीवारें गर्म राख, सितारों के खेल आदि) भगवती प्रसाद वाजपेयी रामेश्वर शुक्ल अंचल ( चढती धूप नई इमारत, उल्का आदि) ऊषादेवी मित्रा (पिया, वचन का मोल, नष्ट नीड़, जीवन की मुस्कान आदि)।

उदयशंकर भट्ट (नये मोड़) लक्ष्मीनारायण लाल, धर्मवीर भारती, अनन्त गोपाल शेवडे, प्रभाकर माचवे, देवराज, ऊषा प्रियम्वदा, मोहन राकेश, कमलेश्वर रजनी पानिक्कर आदि उपन्यासकारों ने भी मनोविश्लेषणात्मक उपन्यास लिखे हैं।

(ङ) आंचलिक उपन्यास - ऐसे उपन्यास, जिनमें किसी प्रदेश का अंचल विशेष की सभ्यता और संस्कृति तथा बोलचाल का अधिक पुट रहता है आँचलिक उपन्यास कहलाते हैं। इस प्रकार के उपन्यास हैं- फणीश्वरनाथ रेणु (मैला आंचल, परिती परिकथा) निराला (बिल्लेश्वर बकरिहा) अमृतलाल नागर (सेठ बांकेलाल) नागार्जुन (बलचनमा, नयी पौध, बाबा बटेशरनाथ, वरुण के बेटे) रांगेय राघव (कब तक पुकारूँ) उदयशंकर भट्ट (सागर लहरें और मनुष्य, लोक परलोक आदि) देवेन्द्र सत्यार्थी, शैलेश भटियानी, वीरेन्द्रनारायण, कैलाश कात्यायन आदि ने भी आंचलिक उपन्यास लिखे हैं।

उपर्युक्त विवेचन के प्रकाश के संक्षेप में कहा जा सकता है कि हिन्दी का उपन्यास साहित्य पर्याप्त समृद्ध है। उसमें अनेक प्रकार की रचना हुई है तथा अब भी होती ही जा रही है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी की विधाओं का उल्लेख करते हुए सभी विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- 'आत्मकथा' की चार विशेषतायें लिखिये।
  8. प्रश्न- लघु कथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  10. प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
  11. प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
  13. प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
  14. प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- नई कहानी आन्दोलन का वर्णन कीजिये।
  17. प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
  18. प्रश्न- उपन्यास और कहानी में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ?
  19. प्रश्न- हिन्दी एकांकी के विकास में रामकुमार वर्मा के योगदान पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।
  21. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।
  22. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
  24. प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
  25. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के आधार पर जीवनी और संस्मरण का अन्तर स्पष्ट कीजिए, साथ ही उनकी मूलभूत विशेषताओं की भी विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- 'रिपोर्ताज' का आशय स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- आत्मकथा और जीवनी में अन्तर बताइये।
  28. प्रश्न- हिन्दी की हास्य-व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं ? इसके विकास का विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- कहानी के उद्भव और विकास पर क्रमिक प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- सचेतन कहानी आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
  32. प्रश्न- समांतर कहानी आंदोलन के मुख्य आग्रह क्या थे ?
  33. प्रश्न- हिन्दी डायरी लेखन पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
  35. अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
  36. प्रश्न- उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- झाँसी की रानी उपन्यास में वर्मा जी ने सामाजिक चेतना को जगाने का पूरा प्रयास किया है। इस कथन को समझाइये।
  38. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
  39. प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
  40. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  41. प्रश्न- पेशवा बाजीराव द्वितीय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  42. अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
  43. प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
  44. प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
  45. प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
  46. अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
  47. प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
  48. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
  49. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
  50. अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
  51. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
  53. प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
  54. अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
  55. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  56. प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
  57. प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  58. अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
  59. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  60. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  61. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  66. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
  68. प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
  69. अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
  70. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  73. अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
  74. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
  75. प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
  76. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
  77. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  78. प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
  81. प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
  82. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  83. प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  84. अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
  85. प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
  87. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
  88. प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  89. अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
  91. प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
  92. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
  93. अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  94. प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
  95. प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
  96. प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
  97. अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
  98. प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
  99. प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
  100. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  101. अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
  102. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
  103. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
  104. अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
  105. प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
  106. प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  107. प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
  108. प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
  109. अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
  110. प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  112. प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  113. अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  114. प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
  115. प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
  116. प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
  117. अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
  118. प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
  119. प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  120. अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
  121. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  122. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  123. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  124. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
  125. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
  127. अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
  128. प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
  129. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
  130. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
  131. अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
  132. प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
  133. प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  134. प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  135. अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
  136. प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
  137. प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  138. अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
  140. अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
  141. प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
  142. प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  143. अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
  144. प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
  145. प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  146. प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
  147. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।

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